बुधवार, 27 नवंबर 2013

हस्तिनापुर की गद्दी के लिए यूपी में छिड़ा सियासी संग्राम


हस्तिनापुर की गद्दी के लिए यूपी में छिड़ा

’’ सियासी संग्राम’’

रैलियों की जंग में छोड़ी जा रहीं शब्दों की मिसाइलें

राम आशीष गोस्वामी

2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव की घोषणा भले ही अभी नहीं हुई है लेकिन चुनावी महाभारत को जीतने के लिए सभी राजनीतिक दल अपनी जमीने तैयार करने में जुट गए हैं। सत्ता के लिए जो संघर्ष शुरु हुआ है उसमें कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है, बल्कि रैलियों के माध्यम से सब अपनी-अपनी जमीनी ताकत दिखाने में जुटे हैं। शब्दों की ऐसी मिसाइलें दागी जा रही हैं जो शायद एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं कहे जा सकते हैं।   

प्रदेश में चल रही सर्द हवाओं से मौसम का पारा भले ही नीचे गिरता जा रहा हो लेकिन सियासी पारा लगातार चढ़ता जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भारी सफलता पाकर सत्ता में आने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया एक बार फिर पुराना कार्ड खेलना चाहते हैं। युवाओं को लुभाने में जहां जुटे हैं वहीं मुजफ्फर नगर दंगे के बाद से नाराज मुसलमानों को भी साधने में जुट गए हैं। इसी उद्देश्य को लेकर पिछले दिनों बरेली में एक बड़ी रैली करके और मंच पर इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां सहित अन्य लोगों को जिस तरह से सम्मान दिया गया उससे समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के प्रति अपना नजरिया स्पष्ट कर दिया। इसके अलावा इस रैली के माध्यम से संगठन को जहां सक्रिय किया वहीं आम जनमानस को भी यह बताने का प्रयास किया कि नरेन्द्र मोदी की रैली में ही नहीं बल्कि सपा की रैली में भी किसी से कम भीड़ नहीं होती है। बरेली में रैली करने के पीछे और भी मुख्य कारण थे क्योंकि इस रुहेलखण्ड क्षेत्र से पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सफलता मिली थी। चूंकि इस क्षेत्र में मुस्लिम और पिछड़ी जातियों की संख्या ज्यादा है ऐसे में सपा इस बार खास करके मुसलमानों पर कांग्रेस की अपेक्षा अपनी पकड़ ज्यादा मजबूत रखना चाहती है। इसी कारण से बरेली में शक्ति प्रदर्शन करके रुहेलखण्ड इलाके में सियासी पारा चढ़ा दिया। मुसलमानों को मनाने के लिए सपा ने एक तीर और भी चलाया है। अब मौलाना तौकीर रजा खां को अगुवा बनाकर सद्भावना सम्मेलन के बहाने एक महाअभियान चलाने की योजना बनाई है जो अपनी तकरीर से मुसलमानों को समाजवादी पार्टी के साथ जोड़ने का काम करेंगे।

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पिछले कई वर्षों से गुटबाजी की शिकार रही है जिसके चलते ही पिछले विधानसभा चुनाव में उसकी बड़ी दुर्गति हुई थी। वह गुटबाजी पूरी तरह से अभी तक खत्म नहीं हो सकी है। लेकिन प्रभारी के रूप में अमितशाह के आने के बाद से ऊपरी सतह पर कम दिखाई पड़ रही है। इसके अलावा नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने के बाद से जो उत्साह दिखाई पड़ा उससे सुस्त पड़े संगठन में सक्रियता आ गई। मोदी की रैलियों में भारी भीड़ देखकर भाजपाई अभी से गद्गद् हैं और उसी का नतीजा है कि कई बड़े नेता अपने बेटों के लिए टिकट के जुगाड़ में लगे हैं। दूसरी तरफ समय की नजाकत भांपकर दूसरे दलों के कुछ वर्तमान सांसद भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की जुगत बना रहे हैं। मोदी अपनी रैलियों में अयोध्या या मथुरा का मुद्दा उठाकर अपने विपक्षियों को कोई मौका नहीं देना चाहते हैं और उसी का परिणाम था कि अयोध्या के निकट बहराइच की रैली में राम मंदिर मामले पर तो आगरा रैली में मथुरा के मामले पर कुछ नहीं कहा जबकि लोग यह सोंच रहे थे कि इस मुद्दे पर जरूर बोलेंगे। भाजपा इससे बचने का प्रयास कर रही है लेकिन मुस्लिम वोटों के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में जो बयानबाजी चल रही है उससे दूसरे वर्ग का लाभ भाजपा को स्वतः ही हो रहा है।

केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद भी प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का संगठन पूरी तरह से सुस्त पड़ा था वर्षों से कहीं कोई धरना न प्रदर्शन हुआ। शायद केंद्र में सपा के समर्थन की कीमत चुकाई जा रही थी लेकिन अब जब चुनाव सामने दिखाई देने लगा और सपा कांग्रेस पर पूरी तरह से हमलावर हो रही है तब कांग्रेस की भी नींद खुली और उसने भी राजधानी में उसी दिन शक्ति प्रदर्शन किया जब बरेली में मुलायम और आगरा में मोदी गरज रहे थे। वर्षों बाद कांग्रेसियों के प्रदर्शन से लखनऊ की व्यवस्था चरमरा गई जिससे पुलिस को लाठियां तक भांजनी पड़ी। उसी दिन गन्ना किसानों की समस्याओं को लेकर राष्ट्रीय लोकदल ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दबकर रह गई।

प्रदेश में रैलियों की जंग अभी जारी रहेगी क्योंकि कोई भी दल यह नहीं चाहता कि गांव की गलियों में जो राजनीतिक चहलकदमी शुरू हुई है वह चुनाव से पहले धीमी पड़े। आज शब्दों की मिसाइलें जिस तरह से एक दूसरे पर दागी जा रहीं हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि ’’आगाज तो हमने देख लिया अंजाम न जाने क्या होगा।’’



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