गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

रावण का ज्ञान

राम आशीष गोस्वामी
अब पता नहीं आप लोगों को विश्वास हो या नहीं, लेकिन बात बिल्कुल एक सौ एक प्रतिशत सही है। दशहरा के दिन रावण दहन देख कर रात में जब मैं वापस घर जा रहा था तो चौराहे पर ही महाराजाधिराज रावण को जीवित खड़े देखकर मैं आश्चर्य में पड़ गया, उस समय तो मेरे होश ही उड़े जा रहे थे कि अभी-अभी मेरी आंखों के सामने ही इनका दहन हुआ है, फिर यह यहां जिन्दा कैसे खड़े हैं। अपने दिल को मजबूत करते हुए मैने सोचा कि शायद यह मेरा भ्रम हो इसलिए कई बार आंखें खोली और बंद की लेकिन तब भी वह अविचल खड़े मुस्करा रहे थे। शायद वह मेरी आशंका को समझा गए थे। इसलिए लपक कर उन्होंने मेरी कुशलता पूछी फिर तो विश्वास न करने का कोई सवाल ही नहीं रह गया था। अब आप से क्या बताऊं, अपने ही दहन को देखकर लौटे रावण के चेहरे पर जो रौनक और खुशी दिखाई पड़ रही थी उसे देखकर मैं हैरान और दंग रह गया। ऐसी खुशी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के चेहरे पर कॉमनवेल्थ गेम्स को सकुशल निपटाने के बाद भी नहीं दिखाई पड़ी थी। खैर....डरते हुए मैने उनसे पूछ ही लिया कि हे राक्षसराज कृपा करके मेरे मन की आशंका को खत्म करें कि अपना ही दहन देखने के बाद भी आपके चेहरे पर इतनी खुशी क्यों है? क्या आपको अपनी पराजय का कोई दुख या मलाल नहीं है। मेरा इतना कहना था कि वह ठठाहर हंस पड़े और बोले अरे मूरख अज्ञानी ‘बाबा’ यह कलियुग है, यहां जो कुछ आंखों के सामने देखा जाता है वह सच नहीं होता है। बल्कि सच वह होता है जो पर्दे के पीछे होता है और पर्दे के पीछे जो होता है वह मेरे जैसा ज्ञानी पंडित ही देख सकता है। अभी तू बाबा नहीं इस मामले में बालक है। खैर मै तेरी सरलता पर खूश हूं ,इसलिए तुझे परम सत्य से अवगत कराता हूं। इतना तो तू जानता ही है कि पूरे वर्ष में सिर्फ एक दिन यानि दशहरे वाले दिन ही राम रावण पर विजय पाते हैं और उसी खुशी में रावण दहन भी होता है। यानि वर्ष में 364 दिन मेरी विजय होती है। अब चूंकि राम के विजय का एक दिन है इसलिए जश्न और खुशियां मनाई जाती है। अब सोंचो 364 दिन जो मेरे हैं, सो मेरे अनुयायी कहां तक जश्न मनाएं। अब रही बात मेरी खुशियों की तो जान लो कि सिर्फ आज का दिन राम का था और कल से फिर यानि रावण का दिन होगा। अब तू ही बता कि मैं दुखी होऊं या खुशियां मनाऊं। इतना सुनते ही मेरे होश उड़ने लगे। मेरा रक्तचाप घटने-बढ़ने लगा जिसे देखकर ज्ञानी पंडित रावण ने हंसते हुए मुझे धीरज बंधाया और कहना शुरू किया कि रे मूरख कलम घसीटू बाबा क्या अपने इस कलम घसीटी के दो दशक में दुनियादारी नहीं देखी जो व्यर्थ की चिंता करता है। अरे मैने सिर्फ एक सीता का अपहरण किया था क्योंकि राम के कहने पर उसके छोटे भाई लक्ष्मण ने मेरी बहन सूर्पणखा के नाक, कान काट डाले थे। तब भी राम ने मुझे मार डाला था। मगर तू देख आज कितनी सीताओं का अपहरण, बलात्कार और हत्या तक कर दी जाती है लेकिन क्या मजाल राम उन्हें मार कर विजय प्राप्त कर लें । इसीलिए तो कहता हूं कि राम की यह विजय तात्कालिक थी और मेरी विजय सर्वकालीन है। मैं तो तब भी अजेय था और आज भी हूं और आगे भी अजेय ही रहूंगा। अब तू भी इस गुप्त ज्ञान को जान गया है इसलिए तू भी ज्ञानी हो गया है अत: लंका में रहने की अनुमति देता हूं । इस मुलाकात के बाद से रावण की बात मुझे सच लगने लगी है अब आप का क्या ख्याल है जरूर बताना।

1 टिप्पणी:

  1. श्रीलंका नहीं, काशी में भी एक जगह है लंका, जाकर वहीं निवास बनाइए...तथास्तु

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